13. गाँव का घर पाठ का प्रश्न उत्तर पीडीएफ

 


इस लेख में हम लोग गांव का घर लेखक ज्ञानेंद्र पति .जी द्वारा रचित कविता का क्वेश्चन आंसर और सारांश देखेंगे तो इस लेख को अंत तक जरूर पढ़िएगा। पढ़ने के बाद आप अपने कॉपी में नोट भी करेगा अंत में हम आपको इस चैप्टर का पीडीएफ फाइल भी प्रदान करेंगे


लेखक परिचय


लेखक- ज्ञानेंद्रपति

जन्म - 1 जनवरी 1950 

जन्म स्थान - पथरगामा, गोड्डा, झारखंड

निवास स्थान- वाराणसी, उत्तर प्रदेश

माता- सरला देवी

पिता- देवेंद्र प्रसाद चौबे


शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल से; बी०ए० और एम०ए० अंग्रेजी विषय मे पटना विश्वविद्यालय से। फिर हिन्दी मे भी एम०ए० बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर से


वृत्ति- बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा चयनित होकर कारा अधिक्षक के रूप में कार्य करते हुए कैदियों के लिए अनेक कल्याणकारी कार्यक्रम चलाए। फिर नौकरी छोड़कर सिर्फ कविता लेखन


सम्मान- पहल सम्मान (2006), साहित्य अकादमी पुरस्कार (2006), बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान पहल सम्मान और साहित्य अकादमी पुरस्कार 'संशयात्मा' रचना के लिए दिया गया था।


कृतियाँ-

कविता संग्रह- आँख हाथ बनते हुए (1970), शब्द लिखने के लिए ही यह कागज बना है (1980), गंगा तट (2000), संशयात्मा (2004), भिनसार (2006), कवि ने कहा (2007)


काव्यनाटक- एकचक्रानगरी, कथेतर गद्य पढते- गढते (2005)

 * यह पाठ 'गाँव का घर' कविता संग्रह 'संशयात्मा' से ली गई है। 








गांव का घर पाठ का प्रश्न उत्तर


1. कवि की स्मृति मे 'घर क चौखट' इतना जीवित क्यो है ?


उत्तर- कवि की स्मृति मे घर का चौखट इसलिए इतना जीवित है क्योकि

(क) घर की चौखट घर की सीमा को बताती है, जहाँ पर बडे-बुजुर्गो को ठहरकर या संकेत देकर अंदर आना पडता है।

(ख) घर की महिलाएँ इसी चौखट पर सहजन का गोंद लगाए रखती है, जिससे वे अपनी बिंदिया चिपका सके।

(ग) इसी चौखट की बगल मे गेरू रंग से पुती दीवार पर दूध मे डूबे अँगूठे के निशान है।


2. पंच परमेश्वर के खो जाने को लेकर कवि चिंतित क्यो है?


उत्तर- पंच परमेश्वर के खो जाने पर कवि निम्नलिखित कारणो से चिंतित है- 

(क) पहले कोई भी बात विवाद होता था गाँव मे तो पंचायत के माध्यम से उसका निपटारा होता था लेकिन आज सभी न्यायालय के दरवाजा खटखटाते है।


(ख) न्यायालय की प्रक्रिया बहुत ही जटिल होती है।


(ग) न्यायालय की प्रक्रिया मे पीड़ित का समय, धन और श्रम भी बर्बाद होता है।


3. 'कि आवाज भी नहीं आती यहाँ तक, न आवाज की रोशनी न रोशनी की आवाज' - यह आवाज क्यो नही आती ?


उत्तर- यह आवाज इसलिए नही आती है क्योंकि आज के समय में मदमस्त आर्केस्ट्रा का वादन भी बंद कमरे मे होने लगा है। ऐसे बडे-बडे लोग अब अपने खुशियों को समान्य लोगो तक नहीं जाने देना चाहते। गरिब लोगो को तो वो उसमे शामिल भी नही होने देना चाहते। साथ ही साथ एक बात ये भी है कि अब पहले जैसा परंपरा भी नही रहा क्योंकि पहले विभिन्न ऋतुओं, महिनों, त्योहारों पर गान बजाना हुआ करता था लेकिन अब ये सब नही, इसिलिए यह आवाज नही आती।


4. आवाज की रोशनी या रोशनी की आवाज का क्या अर्थ होता है ?


उत्तर- आवाज की रोशनी या रोशनी की आवाज का अर्थ है- आवाज के अंदर छिपी ताकत जो लोगो को दूर से सावधान कर दे या व्यवस्था बदल दे । यानि कि वैसे लोग जो धन से, बल से मजबूत है; वे अपनी खुशियो को गरीबो तक नहीं पहुँचने देना चाहते है।


5. कविता मे किस शोक गीत की चर्चा है ?


उत्तर- कविता मे बिना गाये और बिना सुने हुए शोक गीत की चर्चा है। अर्थात कहने का मतलब यह है कि एक समय था जब गाँवो मे ऋतुओ, महीनो, त्योहारो आदि से संबंधित गीत गूँजा करते थे पर आज वो सब सूनने को नहीं मिलता। लेखक इसे ही शोक गीत कहकर संबोधित किए है।


6. सर्कश का प्रकाश-बुलौआ किन कारणो से मरा होगा ?


उत्तर- इसका निम्नलिखित कारण है-


(क) समय परिवर्तन के कारण सर्कश के प्रति लोगो की रूचि धीरे-धीरे समाप्त होती चली गई होगी।


(ख) कलाकारो को आर्थिक संकट हुआ होगा।


(ग) विज्ञान के कारण अर्थात टी०वी०, मोबाइल, सिनेमा, आर्केस्ट्रा के कारण अब सर्कश को कोई ज्यादा ध्यान नही देता होगा। 



7. ग़ाँव के घर की रीढ क्यो झुरझुराती है, इस झुरझुराहट के क्या कारण है ?


उत्तर- गाँव के घर की रीढ इसलिए झुरझुराती है क्योकि बढते शहरीकरण के इस युग मे उनके नष्ट होने का खतरा पैदा हो गया है और उनके लिए अपनी संस्कृति, परंपरा तथा अस्तित्व को बचाना बहुत ही कठिन है। इसके निम्नलिखित कारण है-


(क) गाँवो में आधुनिक होने का होड लगा है।

(ख) एक समय हुआ करता था जब गाँव के झगडो को गाँव मे ही निपटा दिया जाता था लेकिन आज तो न्यायालय जाना पड रहा है।

(ग) शहरीकरण के इस युग मे इंसान जंगलो को लगातार काटते जा रहा है।

(घ) अदालत और अस्पताल के परिसर भी अब प्रदूषित हो गए है।


8. मर्म स्पष्ट करे-


'कि जैसे गिर गया हो गजदंतो को गँवाकर कोई हाथी'


उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति ज्ञानेंद्रपति द्वारा रचित कविता 'गाँव के घर' से लिया गया है। कवि इस पंक्ति के माध्यम से यह बताना चाहते है कि जिस प्रकार हाथी अपने बाहरी दाँत को खोकर अपनी सौंदर्य और अपना मूल्य दोनो खो देती है उसी प्रकार आज गाँव भी अपनी सारी परंपराओ को धिरे धिरे खोकर सौंदर्यविहिन हो रहा है।


9. कविता मे कवि की कई स्मृतियों दर्ज है। स्मृतियो का हमारे लिए क्या महत्व होता है, इस विषय पर अपने विचार विस्तार से लिखे।


उत्तर- स्मृतियाँ यानि 'यादे' हमारे जीवन की अमूल्य निधि होती है। इनकी याद ही हमे रोमांचित कर देती है। हम पुराने समय की कई बातो को याद करके खुशी अनुभव करते है इसके साथ साथ हमे वर्तमान तथा पहले की समय का अंतर भी पता चलता है। ये यादे हमे कभी हँसाती है तो कभी रूलाती है। स्मृतियों का होना बहुत ही आवश्यक होता है। इसके ना होने पर हमारा जिवन भी बिल्कुल शुष्क हो जायेगा।


10. चौखट, भीत, सर्कस, घर, गाँव और साथ ही बचपन के लिए कवि की चिंता को आप कितना सही मानते है ?


उत्तर- चौखट, भीत, सर्कस, घर, गाँव और साथ ही बचपन के लिए कवि की चिंता बिल्कुल ही सही है। क्योकि हर समाजिक व्यक्ति का ऐसा सोचना स्वाभाविक है। ये सही है कि आज मनुष्य विज्ञान के सहारे प्रगति कर रहा है। लेकिन कुछ परिवर्तन हमे सोचने के लिए मजबूर कर देता है। चौखट,भीत, सर्कस, घर, गाँव और बचपन का सीधा संबंध भारतीय संस्कृति तथा उसकी परंपरा से है। इसमे हो रही परिवर्तन भारतीय संस्कृति को प्रभावित करता है। इसलिए कवि की चिंता सही है। 


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