8. उषा Note
लेखक- शमशेर बहादुर सिंह
जन्म- 13 जनवरी 1911 (अहमदाबाद)
निधन - 12 मई 1993
जन्मस्थान - देहरादून, उत्तराखंड छोटा भाई- तेज बहादूर सिंह
माता - प्रभुदई पिता- तारीफ सिंह (कलेक्ट्रिएट मे रीडर और साहित्य प्रेमी) शमशेर 8-9 साल के थे जब उनकी माँ की मृत्यु हो गई
शिक्षा- प्रारंभिक शिक्षा ननिहाल मे, 1928 मे हाई स्कूल, 1931 मे इंटर, 1933 मे बी० ए० (इलाहाबाद से) 1938 मे एम० ए०, आगे की पढ़ाई नही हो पाई। 1977 मे साहित्य अकादमी पुरस्कार
⇛1933 मे पत्नी मृत्यु (टीबी रोग के कारण)
वृति- श्री सिंह रूपाभ, कहानी, माया, नया साहित्य, नया पथ एवं मनोहर कहानिया के संपादन कार्य से जुड़े ।
➡ उन्होने उर्दू - हिंदी कोश का संपादन किया ।
➡ ये सन् 1981-85 तक 'प्रेमचंद सृजनपीठ' विक्रम विश्वविद्यालय , उज्जैन के अध्यक्ष ।
➡ 1978 मे सोवियत रुस की यात्रा, 1989 मे कबीर सम्मान
कृतियां - सन् 1932-33 से लेखन कार्य शुरू करने वाले शमशेर बहादूर सिंह की रचनाये सन् 1951 के आसपास प्रकाशित होना शुरू हुई ।
प्रात नब था बहुत नीला शंख जैसे भोर का नभ
राख से लीपा हुआ चौका [अभी गीला पड़ा है]
बहुत कालि सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे धुल गई हो
स्लेट पर या लाल खड़िया चाक मल दी हो किसी ने
नील जल मे या किसी की गौर झिलमिल देह
जैसे हिल और... रही हो।
जादू टुटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है।
1. प्रातः काल का नभ कैसा था ?
उत्तर - प्रातः काल का नभ पवित्र, उज्जवल और निर्मल था । वह शंख जैसा प्रतीत हो रहा था। उस समय नभ देखने मे लीपा हुआ चौका की तरह लग रहा था। पूरब मे बिखरी सूर्योदय के पहले की लालिमा के कारण नभ देखने मे बहुत ही सुंदर लग रहा था ।
2. 'राख से लीपा हुआ चौका' के द्वारा कवि बिने क्या कहना चाहा है ?
उत्तर- राख से लीपा हुआ चौका के माध्यम से कवि यह कहना चाहते है कि प्रातः काल का नभ पवित्र एवं निर्मल है। जिस प्रकार चौका लीपने के बाद कुछ समय तक किसी को चलने-फिरने नही दिया जाता है ताकि उस पर पैर के निशान न आये, उसी प्रकार भोर के नभ मे भी प्रातः की ओस के कारण गीलापन है और वह बिल्कुल पवित्र एवं निर्मल है।
3. बिंब स्पष्ट करे-
'बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से कि जैसे हो' धुल गई
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियां कवि शमशेर बहादूर सिंह द्वारा रचित कविता 'उषा' से ली गई है। कवि इस पंक्ति के माध्यम से यह कहना चाहते है कि प्रातः के गहरे नीले आकाश पर सूर्योदय से पूर्व की लालिमा के प्रभाव के कारण ऐसा लग रहा है जैसे काली पत्थर पर केसर रगड़ने के बाद उसे धो दिया गया हो । इस तरह उषा का सौंदर्य बढ़ जाता है।
4. उषा का जादू कैसा है?
उत्तर- सूर्योदय से पूर्व की लालिमा और आकाश की नीलिमा दोनो एक साथ मिल गये है तो उषा का सौंदर्य इतना बढ़ गया है कि उसे देखने वाले देखते ही रह जाते है। यह उषा की जादू ही तो है क्योकि जो उसे देखता है, मोहित हो जाता है।
5. 'लाल केसर' और 'लाल खड़ियाक चाक' किसके लिये प्रयुक्त है ?
उत्तर - कालेपन को मलिनता अथवा किसी दोष का सूचक माना जाता है। उसे धोकर साफ किया जाता है। इसी प्रकार काली पत्थर पर लाल केसर रगड़ने तथा उसे धोने के बाद झलकने वाली लालिमा पत्थर की निर्मलता का सूचक बन जाती है। इस तरह 'लाल केसर' का प्रयोग निर्मलता के लिये किया गया है।
स्लेट का रंग काला होता है। इस पर लाल खडिया चाक रगड़कर कालिमा और लालिमा का समन्वय कर आकाश की शोभा का वर्णन किया गया है।
6. व्याख्या करे-
(क) जादू टुटता है इस उषा का अब सूर्योदय हो रहा है
उत्तर - प्रस्तुत पंक्तियां कवि शमशेर बहादूर सिंह द्वारा रचित कविता 'उषा' से ली गई है। कवि इस पंक्ति के माध्यम से यह कहना चाहते है कि सूर्योदय से पूर्व की लालिमा और आकाश की नीलिमा दोनो एक साथ मिल गये है तो उषा का सौंदर्य इतना बढ़ गया है कि उसे देखने वाले देखते ही रह जाते है। यह उषा की जादू ही तो है क्योकि जो उसे देखता है, मोहित हो जाता है। सूर्योदय के साथ सूर्य का प्रकाश फैलने से उषा सुंदरी का सौंदर्य नष्ट हो जाता है।
(ख) बहुत काली सिल जरा से लाल केसर से
कि जैसे धुल गई हो
उत्तर- प्रस्तुत पंक्तियां कवि शमशेर बहादूर सिंह द्वारा रचित कविता 'उषा' से ली गई है। कवि इस पंक्ति के माध्यम से यह कहना चाहते है कि प्रातः के गहरे नीले आकाश पर सूर्योदय से पूर्व की लालिमा के प्रभाव के कारण ऐसा लग रहा है जैसे काली पत्थर पर केसर रगड़ने के बाद उसे धो दिया गया हो। इस तरह उषा का सौंदर्य बढ़ जाता है।
7. इस कविता की बिंब योजना पर टिप्प्णी लिखें ।
उत्तर- शमशेर बहादुर सिंह द्वारा रचित 'उषा' नामक कविता मे प्रातःकालिन नभ और उषा की शोभा का वर्णन बिंबो के माध्यम से किया गया है। कविता मे बिंबात्मक भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है। इस सुंदर भाषा के प्रयोग के कारण इस विषय का चित्र हमारी आंखो के सामने प्रतीत होता है ।
8. प्रात नभ की तुलना बहुत नीला शंख से क्यो की गई है ?
उत्तर - प्रात नभ की तुलना बहुत नीला शंख से इसलिए की गई है क्योकि आकाश और शंख दोनो का रंग नीला होता है । सबसे बड़ी बात तो यह है कि शंख एक पवित्र वस्तु है, जिसका उपयोग पूजा-अर्चना के समय किया जाता है। इसलिये आकाश को भी शंख के समान पवित्र माना गया है
9. नील जल मे किसकी गौर देह हिलर ही है?
उत्तर- नील जल मे उषा रूपी सुंदरी की गौर देह हिल रही है |
10. कविता मे आरंभ से लेकर अंत तक की बिंब - योजन प्रस्तुत करके गति का चित्रण कैसे हो सका है? स्प्ष्ट कीजिए ?
उत्तर- 'उषा' नामक इस कविता के आरंभ मे बहुत नीला शंख, राख से लीपा हुआ चौका, बहुत काली सिल आदि के माध्यम से प्रातः कालिन नभ के लिए बिंब-योजना की गई है, जो थर दिखता है लेकिन कविता के अंत मे किसी की गोरे रंग की देह झिलमिलाने की चर्चा की गई है जो गति की चित्रण है।
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