क्रिया (Verb ) हिन्दी व्याकरण pdf

 


क्रिया क्या है ?


हिंदी व्याकरण में चार विकारी शब्द होते हैं संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और क्रिया। क्रिया को अंग्रेजी में Action Word कहते है। क्रिया का अर्थ होता है करना। जो भी काम हम करते है, वो क्रिया कहलाती है।


क्रिया की परिभाषा


जिस शब्द के द्वारा किसी क्रिया के करने या होने का बोध हो, उसे क्रिया कहते हैं।


or


वाक्य में प्रयुक्त जिस शब्द अथवा शब्द समूह के द्वारा किसी कार्य के होने अथवा उसकी पूर्णता या अपूर्णता का बोध होता हो, उसे 'क्रिया' कहते हैं।


जैसे: पढ़ना, लिखना, खाना, पीना, खेलना, सोना आदि। 




क्रिया के उदाहरण -


• विक्रम पढ़ रहा है।


• शास्त्री जी भारत के प्रधानमंत्री थे।


• महेश क्रिकेट खेल रहा है।


• सुरेश खेल रहा है।


• राजा राम पुस्तक पढ़ रहा है।


• बच्चे क्रिकेट खेल रहे हैं।


• लड़कियाँ गाना गा रही हैं।


• गीता चाय बना रही है।


• महेश पत्र लिखता है।


• उसी ने बोला था।


• राम ही सदा लिखता है।

  



क्रिया के भेद -



क्रिया का वर्गीकरण तीन आधार पर किया गया है- कर्म के आधार पर, प्रयोग एवं संरचना के आधार पर तथा काल के आधार पर,


1. कर्म के आधार पर


2. प्रयोग एवं संरचना के आधार पर


3. काल के आधार पर क्रिया का वर्गीकर



कर्म के आधार पर क्रिया के भेद


1. सकर्मक क्रिया


2. अकर्मक क्रिया




सकर्मक क्रिया


वे क्रियाएँ जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर न पड़कर कर्म पर पड़ता है उन्हें सकर्मक क्रिया कहते हैं। सकर्मक क्रिया का अर्थ कर्म के साथ में होता है, अर्थात सकर्मक क्रिया में कर्म पाया जाता है। सकर्मक क्रिया दो प्रकार की होती है।


सकर्मक शब्द 'स' और 'कर्मक' से मिलकर बना है, जहाँ 'स' उपसर्ग का अर्थ 'साथ में' तथा 'कर्मक' का अर्थ 'कर्म के' होता है।


सकर्मक क्रिया के उदाहरण -


1. गीता चाय बना रही है।


2. महेश पत्र लिखता है।


3. हमने एक नया मकान बनाया।


4. वह मुझे अपना भाई मानती है।


5. राधा खाना बनाती है।


6. रमेश सामान लाता है।


7. रवि ने आम खरीदे।


8. हम सब से शरबत पीया। 



अकर्मक क्रिया


वे क्रियाएँ जिनका प्रभाव वाक्य में प्रयुक्त कर्ता पर पड़ता है उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं। अकर्मक क्रिया का अर्थ कर्म के बिना होता है, अर्थात अकर्मक क्रिया के साथ कर्म प्रयुक्त नहीं होता है।


अकर्मक शब्द अ और कर्मक से मिलकर बना है, जहाँ अ उपसर्ग का अर्थ बिना तथा कर्मक का अर्थ कर्म के होता है।


अकर्मक क्रिया के उदाहरण -


• रमेश दौड़ रहा है।


• मैं एक अध्यापक था।


• वह मेरा मित्र है।


• मैं रात भर नहीं सोया।


• मुकेश बैठा है।


• बच्चा रो रहा है।



✳️ रचना की दृष्टि से क्रिया के भेद :-


1. सामान्य क्रिया


2. सहायक क्रिया


3. संयुक्त क्रिया


4. सजातीय क्रिया


5. कृदंत क्रिया


6. प्रेरणार्थक क्रिया


7. पूर्वकालीन क्रिया


8. नाम धातु क्रिया


9. नामिक क्रिया


10. विधि क्रिया 



सामान्य क्रिया


सामान्य क्रिया - यह क्रिया का सामान्य रूप होता है. जिसमें एक कार्य एवं एक ही क्रिया पद होता है। जब किसी वाक्य में एक ही किया पद प्रयुक्त किया गया हो तो, उसे सामान्य क्रिया कहते हैं।


सामान्य क्रिया के उदाहरण


• रवि पुस्तक पढ़ता है।


• श्याम आम खाता है।


• श्याम जाता है।


सहायक क्रिया


सहायक क्रिया - किसी वाक्य में मुख्य क्रिया की सहायता करने वाले पद को सहायक क्रिया कहते हैं, अर्थात किसी वाक्य में वह पद जो मुख्य क्रिया के साथ लगकर वाक्य को पूर्ण करता है, उसे सहायक क्रिया कहते हैं। सहायक क्रिया वाक्य के काल का परिचायक होती है।


सहायक क्रिया के उदाहरण


• रवि पढ़ता है।


• मैंने पुस्तक पढ़ ली है।  

• विजय ने अपना खाना मेज़ पर रख दिया है। 



संयुक्त क्रिया


संयुक्त क्रिया-वह क्रिया जो दो अलग-अलग क्रियाओं के योग से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।


संयुक्त क्रिया के उदाहरण 


• रजनी ने खाना खा लिया।


• मैंने पुस्तक पढ़ डाली है।


• शंकर ने खाना बना लिया।



संयुक्त क्रिया के भेद


1. आरंभबोधक :- जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के आरंभ होने का बोध होता है, उसे 'आरंभबोधक संयुक्त क्रिया' कहते है।


जैसे - वह पढ़ने लगा, पानी बरसने लगा, राम खेलने लगा।


 2. समाप्तिबोधक :- जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता, व्यापार की समाप्ति का बोध हो, वह 'समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया' है।


जैसे- वह खा चुका है, वह पढ़ चुका है। धातु के आगे 'चुकना' जोङने से समाप्तिबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।


3. अवकाशबोधक :- जिस क्रिया को निष्पन्न करने के लिए अवकाश का बोध हो, वह 'अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया' कहते है।


जैसे - वह मुश्किल से सो पाया, जाने न पाया।


4. अनुमतिबोधक :- जिससे कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो, वह 'अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया' है।


जैसे - मुझे जाने दो; मुझे बोलने दो। यह क्रिया 'देना' धातु के योग से बनती है।


5. नित्यताबोधक :- जिससे कार्य की नित्यता, उसके बंद न होने का भाव प्रकट हो, वह 'नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया' है।


जैसे- हवा चल रही है; पेङ बढ़ता गया, तोता पढ़ता रहा। मुख्य क्रिया के आगे 'जाना' या 'रहना' जोङने से नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया बनती है।


6. आवश्यकताबोधक :- जिससे कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो, वह 'आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया' है।


जैसे - यह काम मुझे करना पड़ता है; तुम्हें यह काम करना चाहिए। साधारण क्रिया के साथ 'पङना', 'होना' या 'चाहिए' क्रियाओं को जोडने से आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।


7. निश्चयबोधक :- जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के व्यापार की निश्चयता का बोध हो, उसे 'निश्चयबोधक संयुक्त क्रिया' कहते हैं। 


जैसे - वह बीच ही में बोल उठा, उसने कहा- मैं मार बैठेंगा, वह गिर पडा, अब दे ही डालो। इस प्रकार की क्रियाओं में पूर्णता और नित्यता का भाव वर्तमान है।


8. इच्छाबोधक :- इससे क्रिया के करने की इच्छा प्रकट होती है।


 जैसे - वह घर आना चाहता है, मैं खाना चाहता हूँ। क्रिया के साधारण रूप में 'चाहना' क्रिया जोडने से 'इच्छाबोधक संयुक्त क्रियाएँ' बनती हैं।


9. अभ्यासबोधक :- इससे क्रिया के करने के अभ्यास का बोध होता है। सामान्य भूतकाल की क्रिया में 'करना' क्रिया लगाने से अभ्यासबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती है।


जैसे - यह पढ़ा करता है, तुम लिखा करते हो, मैं खेला करता हूँ।


10. शक्तिबोधक :- इससे कार्य करने की शक्ति का बोध होता है। जैसे- मैं चल सकता हूँ, वह बोल सकता है। इसमें 'सकना' क्रिया जोडी जाती है।


11. पुनरुक्त संयुक्त क्रिया :- जब दो समानार्थक अथवा समान ध्वनि वाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें 'पुनरुक्त संयुक्त क्रिया' कहते हैं।


जैसे - वह पढ़ा-लिखा करता है, वह यहाँ प्रायः आया-जाया करता है, पड़ोसियों से बराबर मिलते-जुलते रहो। 














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