7. पुत्र वियोग putra viyog PDF

 


7.पुत्र वियोग (सुभद्रा कुमारी चौहान)


कवयित्री परिचय


सुभद्रा कुमारी चौहान छायावादी काल से पूर्व आर्यों, पर वे छायावादी चेतना में नहीं रीं, अपितु स्वतन्त्र रूप से काव्य रचना करके, हिन्दी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान बनाया। राष्ट्रीय चेतना से प्रभावित होकर नव जागरण की चारण बर्नी।


जीवन परिचय-सुभद्रा जी का जन्म 16 अगस्त, 1904 में उत्तरप्रदेश के इलाहाबाद जिले के निहालपुर गाँव में हुआ था। आपके पिता जी का नाम ठाकुर रामनाथ सिंह और माता जी का नाम श्रीमती धिराज कुँवर था। उनका विवाह 1919 ई. में मध्य प्रदेश के खण्डवा निवासी ठाकुर लक्ष्मण सिंह से हुआ था।


शिक्षा- क्रास्थवेट गर्ल्स स्कूल, इलाहाबाद में प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त की। यहाँ महादेवी वर्मा भी अध्ययन कर रही थीं। उसके बाद थियोसोफिकल स्कूल, वाराणसी में कक्षा 9 तक की शिक्षा पायी और आगे की शिक्षा छोड़कर असहयोग आन्दोलन में जा समार्थी।


व्यक्तित्व-प्रखर, तेजोमयी, सौम्य व्यक्तित्व की वे धनी थीं। समाज सेवा, राजनीति, स्वधीनता संघर्ष में सक्रिय भाग लिया। अनेक बार कारावास यात्रा की, मध्य प्रदेश से एम. एल. ए. भी चुनी गयीं।


साहित्य साधना- छात्र जीवन से ही साहित्य रचना की प्रवृत्ति जाग उठी थी। कालान्तर में एक प्रतिष्ठित साहित्यकार बनीं और 'झाँसी की रानी' कविता पर अपार लोकप्रियता भी अर्जित की।


आपकी प्रसिद्ध रचनाएँ हैं- मुकुल, त्रिधारा (काव्य), बिखरे मोती, सभा के खेल (कहानी)।


मुकुल पर 1930 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का सेक्सरिया पुरस्कार भी प्राप्त हो चुका है।


सुभद्रा कुमारी चौहान की भाषा सरल, व्यावहारिक, सरस एवं बोलचाल की है। शिल्प भी बड़ा सहज है, यही कारण है कि उन्होंने विलक्षण लोकप्रियता अर्जित की थी। नारी हृदय की कोमलता, भावुकता तथा सहृदयता उनकी काव्य शैली का प्रमुख अंग है। जटिल भाव को भी बड़े सहज एवं सरल ढंग से प्रस्तुत कर देने की क्षमता भी उनकी विलक्षण विशेषता है। भाव और शिल्प-दोनों परस्पर एक साथ में पिरोये रहते हैं, कुछ भी अस्वाभाविक नहीं लगता सब कुछ बड़ा सहज है। लोक गीत शैली में 'झाँसी की रानी' की विलक्षण कथा का बड़ा सहज अंकन उनकी विलक्षण प्रतिभा का ही प्रमाण है।






कविता का सारांश


सुभद्रा जी मूलतः राष्ट्रीय चेतना की गायिका हैं पर समाज में भी तो नाना प्रकार के करुण चित्र बिखरे पड़े रहते हैं। यहाँ ऐसा ही एक चित्र उतारा गया है। पुत्र की मृत्यु के उपरान्त एक माता की क्या स्थिति हो जाती है, वही यहाँ व्यंजित है।


आज समस्त दिशाएँ हँस रही हैं, चारों ओर आनन्द और उल्लास का वातावरण छाया हुआ है, पर यहाँ मात्र एक मैं ही हूँ जिसका खिलौना (पुत्र) खो गया है, जो अब तक मेरे पास नहीं आ सका है। (बच्चा खिलौना चाहता है उसमें मग्न रहता है, वह उसके लिये परमप्रिय होता है, उसके खो जाने पर या दूर जाने पर उसका हृदय भी भग्न हो जाता है) यही स्थिति पुत्र वियोग में माता की होती है, वह पुत्र के साथ बिताये पिछले दिनों को याद करती है। मैंने उसको गोद से नहीं उतारा कि कहीं उसको शीत न लग जाय, जब भी उसने 'माँ' कहकर पुकारा, मैं सारे काम-काज छोड़कर उसके पास दौड़ती चली आयी। मैं उसको थपकियाँ देकर सुलाया करती थी, उसके सुलाने हेतु ही मैं लोरियाँ भी गाया करती थी, उसको जरा-सा भी कोई कष्ट हो जाता था उसके मुख पर मलिनता उभर आती थी, मैं सारी सारी रात जागती रहती थी, उसको गोद में समेटे रहती थी।


माँ कहती है, मैंने इसके लिये क्या नहीं किया। अमूर्त की भी देव-तुल्य पूजा की जड़ पत्थर को भी देवता बना लिया। अपना अस्तित्व ही समाप्त कर दिया। उस देवता पर कभी पुत्र की सलामती हेतु दूध-बताशा चढ़ाया, नारियल चढ़ाया, कहीं उसके सामने अपना शीश नवाया पर इस सबका कोई फल प्राप्त नहीं हो सका, साथ ही मेरा खिलौना मुझसे छिन गया। अब तो मैं परम असहाय हूँ, विवश हूँ, यहाँ उदास दुःखी बैठी हूँ, पर मेरा छोना छिन ही गया।


मेरे व्यथित प्राण तड़प रहे हैं, एक पल को भी शान्ति नहीं है, शान्ति की रेखा भी नहीं है। चारों ओर अशान्ति ही अशान्ति है। यह मुझे पता है कि मेरा जो पुत्र रूपी धन खो गया, उसको पाना सर्वथा असम्भव है। इसमें कोई भी सन्देह नहीं है पर मैं क्या करू, यह मेरा मन हरदम रोता ही रहता है। मैं उसको समझाने का काफी प्रयास करती हूँ पर वह मानता ही नहीं है। उसके अभाव में मेरा सरल जीवन बड़ा जटिल बन गया है और चारों ओर सूनापन छा गया है।


अब कभी-कभी यह लगता है कि किसी प्रकार भी पल भर को उसको पा जाती, उसको हृदय से लगाकर बड़े प्यार से उसका सर सहला-सहला कर उसको यह समझाती मेरे भैया, मेरे बेटे अब माँ को इस प्रकार छोड़कर मत जाना, तुम नहीं जानते बेटा खोकर माता को अपना मन समझाना बड़ा कठिन हुआ करता है। यह हो सकता है कि तुम्हारे भाई-बहन तुम्हें भूल जायें, तुम्हारे पिता भी तुम्हें भुला दें, पर माँ तो रात-दिन की साथिन होती है, वह कैसे तुम्हें भुलाकर अपना मन समझा सकती है।


अभ्यास


कविता के साथ


प्रश्न 1. कवयित्री का 'खिलौना' क्या है?


उत्तर-कवयित्री का खिलौना उसका लाल ही है, जो खो गया है, अब वह नहीं मिल सकता।


प्रश्न 2. कवयित्री स्वयं को असहाय और विवश क्यों कहती है?


उत्तर- पुत्र माता का सहारा होता है, उसका आश्रय स्थल होता है, बुढ़ापे की लाठी होता है। असमय वह चला गया। कवयित्री एकदम असहाय हो गयी और वह उस दुःख पीड़ा को सहने हेतु विवश ही है। जब तक उसका पुत्र उसके साथ था, वह उसमें हर क्षण खोयी रहती थी, मग्न रहती थी जिस प्रकार बच्चा खिलौने में डूबा रहता है, मग्न रहता है। वह उसका हर प्रकार का ध्यान रखती थी, कहीं उसको ठण्ड न लग जाय, कहीं उसको कोई कष्ट न हो जाय, पर आज वह क्या करे, पता नहीं वह कहाँ होगा। उस पर क्या बीत रही होगी। वह कुछ भी नहीं करने की स्थिति में है, अतः पूरी तरह विवश ही है उसका कुछ भी उसके वश में नहीं है।


प्रश्न 3. पुत्र के लिये माँ क्या-क्या करती है? (BSEB, 2012) 


उत्तर-वह उसके लिए क्या नहीं करती है? सब कुछ करती है। कविता के अनुसार वह परम सचेत रहती है। उस पर शीत का प्रकोप न हो जाय, वह कभी अपने अंक से उसको नहीं उतारती, उसकी एक आवाज पर सारे गृहकार्य छोड़कर उसके पास दौड़ी-दौड़ी चली आती है। उसको थपकियाँ दे देकर सुलाती है, उसके लिये लोरियाँ भी गाती है, यदि उसको जरा-सा भी कोई कष्ट होता है, वह सारी रात जागकर ही व्यतीत करती है। वह अपना निजी व्यक्तित्व सुख-चैन सब उसके लिये परित्याग कर देती है। पाहन को भी देव बनाकर उसकी (पुत्र) कुशलता हेतु पूजा करती है। वह उस पाहन देव पर कभी नारियल चढ़ाकर, पुत्र की कुशलता हेतु भीख माँगती है, तो कभी दूध, बताशे चढ़ाती है और बड़े श्रद्धा भाव से उस देवता के श्री चरणों में शीश नवाती है। 


प्रश्न 4. अर्थ स्पष्ट करें-


आज दिशाएँ भी हँसती हैं, है उल्लास विश्व पर छाया। मेरा खोया हुआ खिलौना, अब तक मेरे पास न आया ।।


सन्दर्भ व प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता 'पुत्र वियोग' से उधृत हैं। एक माता के अन्तर की व्यथा फूट पड़ी है जिसका लाल उससे छिन गया है, यह पीड़ा व दुःख इतना गहरा है कि सर्वथा असहनीय है, परम वेदनाकारकभी है। व्याख्या- वह कहती है आज विश्व में हर्ष, उल्लास, आनन्द का वातावरण छाया है। समस्त दिशाएँ उसी आनन्द में मग्न हैं। चारों ओर खुशियाँ ही खुशियाँ हैं पर यदि कोई इस समस्त उल्लासमयी वातावरण में दुःखी है तो वह है एक अभागी माता जिसका लाल छिन गया था। वह उसका खिलौना था। खिलौना बच्चे में आनन्द, उल्लास का आधार होता है, वह उसको अत्यधिक प्रिय भी होता है। ठीक उसी प्रकार पुत्र भी एक माता के लिये उसके जीवन का आधार होता है, उसके उल्लास का आधार होता है, उसके अभाव में तड़पना ही रह जाता है। वह भी व्यथित है, व्याकुल है, तड़प रही हैं। 

विशेष (1) ये पंक्तियाँ एक माता के हृदय की पीडापरक स्थिति का यथार्थ चित्र उतार रही है।


(2) नारी मनोविज्ञान की बड़ी गहरी परख सुभद्रा जी को है।


(3) 'खिलौना' शब्द का प्रयोग बड़ा 'सटीक' प्रयोग है, जिसके माध्यम से आन्तरिक व्यथा की व्यंजना बड़ी सरलता से हो उठी है।


(4) अलंकार 

(1) अनुप्रास 'खोया-खिलौना',

 (ii) प्रतीकात्मकता 'खिलौना' में,

 (iii) पुनरुक्तिप्रकाश 'खिलौना' में।


प्रश्न 5. माँ के लिए अपना मन समझाना कब कठिन है और क्यों ?


उत्तर- माता का हृदय बड़ा कोमल होता है और पुत्र उसकी अनुपम निधि माना जाता है। उसकी प्राप्ति हेतु वह नाना प्रकार की मनौतियाँ मनाती है। उसको पाकर वह निहाल हो जाती है मानो सम्पूर्ण विश्व का सुख उसकी झोली में समा गया हो, साक्षात् नन्दन कानन ही उसके आँगन में उतर आया हो, वह उसका खिलौना होता है, हर समय उसका मन उसमें समाया रहता है और अपार आनन्द के सागर में गोते लगाता रहता है। आज उसका यह खिलौना खो रहा है। वह पुत्रहीन हो गयी है और न तो वह कुछ कर सकी और न ही कोई दूसरा व्यक्ति कुछ कर सका। अब वह निराश, हताश, असहाय और विवश है उसके व्याकुल प्राण तड़प रहे हैं, उसमें एक पल को भी शान्ति नहीं है, वह अब अपना खोया धन कभी भी नहीं पा सकेगी ऐसी स्थिति में मन को समझाना सर्वथा कठिन है जटिल है। वह मानता ही नहीं मचलता-तड़पता ही रहता है।

वह क्या करे ? उसके भाई-बहन उसको भूल सकते हैं, पर माँ कैसे भूल सकती है किन्तु रात-दिन की साथिन माँ, कैसे अपना मन समझाये।


प्रश्न 6. पुत्र को 'छौना' कहने में क्या भाव छुपा है? उसे उद्घाटित करें


उत्तर- छौना हिरण शावक होता है, वह कोमल, सुन्दर और चंचल होता है। माताएँ अत्यधिक प्यार में अपने पुत्र को भी 'छौना' कहती हैं। हिरण के शत्रु अत्यधिक होते हैं- वन पशु, शिकारी आदि। अतः हिरण अपने 'छौना' को हर क्षण उनसे बचाने का प्रयास करता रहता है। इस कारण उसकी सारी चेतना 'छौना' पर ही केन्द्रित रहती है। ठीक उसी प्रकार प्रत्येक माता का सम्पूर्ण ध्यान का केन्द्र भी उसका पुत्र ही होता है। उसको सर्दी न लग जाय, वह उसको गोद से भी नहीं उतारती। उसने जरा पुकारा 'माँ', वहाँ वह सारे गृहकार्य त्यागकर उसकी ओर दौड़ पड़ती है अतः ममता, वात्सल्य और जीवन का आधार छौना ही है अर्थात् उसका पुत्र। अतः छौना शब्द का प्रयोग बड़ा सार्थक है।


प्रश्न 7. मर्म उद्घाटित करें-


भाई बहिन भूल सकते हैं, पिता भले ही तुम्हें भुलावे।


किन्तु रात-दिन की साथिन माँ, कैसे अपना मन समझावे ।।


उत्तर- ये पंक्तियाँ सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित कविता' पुत्र वियोग' से उधृत हैं। किसी माता का पुत्र जब चला जाता है तो उसकी व्यथा उसके भीतर कितनी सालती है यह यहाँ व्यंजित है।

मृत पुत्र को माता 'कभी नहीं भूल सकती'। कारण स्पष्ट है पुत्र हर क्षण, हर समय, रात-दिन माता के पास ही रहता है। अतः माता का उससे अपार स्नेह होता ही है, दुगुना भी होता है। पहले स्नेह का आधार वह माता है और पुत्र से माता का अपार स्नेह होना बड़ा स्वाभाविक है। दूसरा आधार है सानिध्य का हर क्षण। सानिध्य का यह भी एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि साहचर्य और सानिध्य प्रेम की प्रगाढ़ता का आधार होता है। भाई-बहन और माता के हृदय में भारी अन्तर होता है। माता ने उसको अपने गर्भ में धारण किया, पाला और वह उसके साथ हर क्षण रहा है अतः वह उसको कैसे भुला सकती है। हो सकता है भाई-बहन उसको भुला दें, पिता भी भुला सकता है, पर माता कदापि नहीं, कभी नहीं क्योंकि उसका बन्धन भी ऐसा ही है। जिसके साथ पुत्र रात-दिन रहा वह उसके वियोग में अपना मन कैसे समझा सकती है, यह कार्य अत्यन्त दुष्कर है।


प्रश्न 8. कविता का भावार्थ संक्षेप में लिखिये।

उत्तर- सारांश अंश देखिये।


प्रश्न 9. इस कविता को पढ़ने पर आपके मन पर क्या प्रभाव पड़ा ? उसे लिखिए।


उत्तर-माता व पुत्र का सम्बन्ध बड़ा प्रगाढ़ होता है, गहरा होता है। माता-पुत्र को गर्भ में धारण करती है, पालती है, असमर्थ

से समर्थ बनाती है, वह उसके जीवन का एकमात्र आधार होता है, उसका वियोग उसके लिये असह्य पीड़ा होती है। पर आज का पुत्र उसके सारे उपकारों को भूल जाता है, सारी व्यथाएँ भुला देता है और जिस माँ की अँगुली पकड़कर वह चलना सीखा बीबी का हाथ पकड़ते ही उसे घर से निकाल देता है, यह कितना अमानवीय है। जब वह छोटा था, बीबी नहीं आयी थी, माता बड़ी भली थी, उसके सारे गुण पुत्र को दिखायी देते थे और पत्नी के आते ही वह गुणहीन हो गयी, तिरस्कार योग्य हो गयी, प्रताणना की वस्तु बन गयी। यह आज का चलन। यह कविता मुझे झकझोर गयी और इन सारी स्थितियों पर विचार करने से मेरी चेतना मचल उठी।