6. तुमुल कोलाहल कलह में
लेखक - जयशंकर प्रसाद
लेखक परिचय
जन्म - 30 जनवरी 1889 (संवत-1946)
निधन - 15 नवम्बर 1937
जन्मस्थान- वाराणसी, उत्तर प्रदेश
पिता- देवी प्रसाद साहु पितामह शिवरत्न साहू (सुंघनी साहु के नाम से विख्यात)
शिक्षा- आठवीं तक। इनकी शिक्षा की व्यवस्था घर पर ही की गई थी।
भाई- शंभुरतन (ज्येष्ठ भ्राता)
🔶 बारह वर्ष की अवस्था में पितृविहीन, दो वर्ष बाद माता की मृत्यु ।
🔶 बड़े भाई की मृत्यु के बाद घर मे कलह की स्थिति हुई, जिससे इन्होने बहुत ही संघर्ष किया।
रचनाये-
काव्य - चित्राधार, कानन कुसुम, प्रेम-पथिक, करुणालय, झरना, आँसू, लहर, कामायनी ।
नाटक- राजश्री, विशाख, सज्जन, प्रायश्चित, अजातशत्रु, स्कंदगुप्त, चंद्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी, एक घंट, कामना
उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती
कहानी संग्रह- छाया, प्रतिध्वनि, इंद्रजाल, आकाशदीप
निबंध- काव्यकला तथा अन्य निबंध
पाठ की पंक्तियां
तुमुल कोलाहल कलह मे, मै हृदय की बात रे मन !
विकल होकर नित्य चंचल, खोजती जब निंद के पलः
चेतना थक सी रही तब, मै मलय की वात रे मन !
चिर-विषाद विलीन मन की इस व्यथा के तिमिर वन की;
मैं उषा सी ज्योति रेखा, कुसुम विकसित प्रात रे मन !
जहाँ मरू ज्वाला धधकती, चातकी कन को तरसती;
उन्ही जीवन घाटियों की, मैं सरस बरसात रे मन !
पवन की प्राचीर मे रूक, जला जीवन जा रहा झुक;
इस झुलसते विश्व-वन की, मै कुसुम ऋतु रात रे मन !
चिर निराशा नीरधर से, प्रतिच्छायित अश्रु सर मे;
मधुप मुखर मरंद मुकुलित, में सजल जलजात रे मन !
पाठ का प्रश्न उत्तर
1. 'हृदय की बात' का क्या कार्य है?
उत्तर- जब अशांति, कलह और घनघोर कोलाहल की स्थिति हो तो हृदय की बात का कार्य मस्तिष्क को शांति पहुँचाना, उसे आराम देना है । मस्तिष्क जब विचारो के कोलाहल से घिर जाता है तो हृदय की बात उसे आराम देती है। हृदय कोमल भावनाओ का प्रतिक है जो मस्तिष्क को विचारो के अशांति से दूर करता है।
2. कविता मे उषा की किस भूमिका का उल्लेख है ?
उत्तर- उषा उजाले तथा प्रकाश का प्रतीक है। कविता मे मनु को प्राप्त
करके श्रद्धा आनंद में मग्न होकर गाती है कि हे मन ! मैं हमेसा दुख में डूबे हुये मन तथा इस अंधकार को उषा (उजाले) के समान हूँ। कविता मे दुःखी मन की व्यथा को दूर करने के लिये उषा का वर्णन है। यहाँ श्रद्धा उषा का प्रतीक है|
3. चातकी किसके लिये तरसती है ?
उत्तर- चातकी एक पक्षी है जो स्वाति की बूँद के लिये तरसती है। ये पक्षी केवल स्वाति नक्षत्र का ही जल ग्रहण करती है। इसलिये वो सालो भर स्वाति के जल की प्रतीक्षा करती है और जब स्वाती का जल मिलता है तो उसे ग्रहण करती है।
4. बरसात को 'सरस' कहने का क्या अभिप्राय है ?
उत्तर- बरसात को सरस कहने का अभिप्राय यह है कि मरुस्थल मे जहाँ पानी का नितांत अभाव होता है वहा धरती गर्मी के कारण तरसती है। साथ ही साथ वनस्पति, पशु-पक्षी तथा अन्य प्राणि पानी के बिना व्याकुल हो जाते है। ऐसी स्थिति में बरसात होने पर धरती हरी-भरी हो जाती है। इसी बरसात से चातकी के मन और तन दोनो की प्यास बुझती है। इस प्रकार वो रस से भर जाती है और तन मन से सरस हो जाती है।
5. काव्य- सौंदर्य स्प्ष्ट करे-
पवन की प्राचीर मे रूक, जला जीवन जा रहा झुक;
इस झुलसते विश्व-वन की, मैं कुसुम ऋतु रात रे मन ।
उत्तर- जयशंकर प्रसाद द्वार रचित यह पद्यांश छायावादी शैली का सबसे सुंदर आत्मगान है। मनु को प्राप्त करके श्रद्धा आनंद विभोर होकर गाती है कि हे मेरे मन । जब जीवन पवन की चारदीवारी मे बंद होकर जलकर झुक जाता है, तब इस झुलसते हुये विश्व वन की मैं वसंत ऋतु हूँ। अर्थात मैं ज्वाला मे धधकते हुये विश्व को शांति प्रदान करने वाली हूँ।
• इसकी भाषा उच्चस्तर की है।
• पवन प्राचीर, जला जीवन, विश्व वन, ऋतुराज मे अनुप्रास Sa अलंकार है।
• विश्व वन मे रूपक अलंकार है |
6. 'सजल जलजात' का क्या अर्थ है ?
उत्तर- 'सजल जलजात' का अर्थ है- "जल मे खिला हुआ कमल" ।। प्रकार कमल कीचड़ मे रहकर भी पुष्प-रस से दुसरो को तृप्त करता है। उसी प्रकार श्रद्धा निराशा मे भी आशा का संचार करती है। कवि का यही आशय है।
7. कविता का केंद्रिय भाव क्या है? संक्षेप मे लिखिए।
उत्तर- इस कविता की नायिका 'श्रद्धा' है। वो स्वयं कामायनी है। वो विश्वासपुर्ण आस्तिक बुद्धि है। वो हर पल मन को शांति एवं खुशी प्रदान करती है। वो किसी भी परिस्थिति में व्याकुल मन को शांति प्रदान करती है। श्रद्धा नारी स्वरुप का परिचय देती है।
8. कविता मे 'विषाद' और 'व्यथा' का उल्लेख है, यह किस कारण से है, अपनी कल्पना से उत्तर दीजिए।
उत्तर- कविता मे 'विषाद' और 'व्यथा' का उल्लेख जीवन में आने वाली कठिन परिस्थितियो से है। मानव के जीवन मे अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ, बाधाये, अड़चने आती रहती है जिससे मन बिल्कुल व्याकुल एवं दुःखित हो जाता है। ऐसे मे घर की स्त्री ही नाजुक स्थिति को संभालती है।
कामायनी महाकाव्य मे श्रद्धा जब मनु से अलग हो जाती है तो उसके मन मे विषाद व व्यथा उत्पन्न होती है, परंतु फिर भी वह स्वयं को संभालती है और मनु को भी संभालती है।
9. यह श्रद्धा का गीत है जो नारीमात्र का गीत कहा जा सकता है। सामान्य जीवन मे नारियों की जो भुमिका है, उसे देखते हुये यह कहा जा सकताहै कि कविता मे कही गई बाते उसपर घटित होती है ? विचार कीजिए और गृहस्थ जीवन मे नारी के अवदान पर एक छोटा निबंध लिखिए ।
उत्तर- वास्तव में श्रद्धा का यह गीत सामान्य नारी का ही गीत है।
गृहस्थ जीवन में नारी का अवदान
घर की स्त्री, घर की व्यवस्थापिका, घर की लक्ष्मी, पुरुष की सहयोगिनी, शिशु की पहली शिक्षिका को आदिकाल से ही स्वीकार किया गया है। नारी हमेसा सूर्य जैसा तेज, समुद्र की तरह गंभिर, चन्द्रमा की तरह शीतल, पृथ्वी की तरह क्षमता वाली, पर्वत की तरह उच्च मानसिक गुण वाली होती है। ये सदा हमारे लिये पूजनीय है। नारी हमेशा घर की व्यव्स्था, संतान का पालन-पोषण तथा घर गृहस्थी को सुख-शांति प्रदान करती है। स्त्री हृदय प्रधान होती है। घर मे आये प्रत्येक दुःख, कष्ट, बाधा को हरने में नारी सक्षम होती है। नारी नर के प्रत्येक कार्य मे पुर्ण सहयोग देकर घर की व्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाती है।
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