12th Hindi chapter-4 छप्पय Questions answer

 

कवि परिचय


नाभादास अग्रदास के प्रमुख शिष्य थे। इनकी महत्ता से ही प्रभावित होकर गुरु ने उन्हें काव्य रचना की प्रेरणा दी थी।


जीवन परिचय- आपका जीवन परिचय स्पष्ट नहीं है। अनुमान है कि 1570 ई. में आपका जन्म हुआ था। शैशव में ही पिता की मृत्यु हो गयी, माता के साथ जयपुर जा बसे। माता ने भी उनका अधिक साथ नहीं दिया। गुरु ही प्रतिपालक बने और उनके संरक्षण में अध्ययन किया और अधिकांश ज्ञान स्वाध्याय द्वारा ही अर्जित किया गया।


ये स्वामी रामानन्द के शिष्य परम्परा के कवि माने जाते हैं जो सगुणोपासक राम भक्त हैं। आपका निवास वृन्दावन भी रहा। आपकी रचनाओं में भक्तमाल, अष्टयाम प्रसिद्ध हैं। साथ ही रामचरित सम्बन्धी प्रकीर्ण पदों का संग्रह भी उपलब्ध है। यह भी माना जाता है कि नाभादास दलित वर्ग से सम्बन्ध रखते थे।


नाभादास सगुणोपासक रामभक्त कवि थे पर उनकी भक्ति का रूप प्रचलित रामभक्ति से थोड़ा अलग ही है। उसमें मर्यादा के स्थान पर माधुर्य का गहरा पुट है। वे आग्रह नहीं रखते थे संकीर्णता उनमें नहीं थी। उनकी शील, सोच और मानस रूप निर्मल दर्पण था। अविचल भगवद्भक्ति, भक्तचरित और भक्तों की स्मृतियाँ, नाभादास के काव्य की विशेषता है। उनका जीवन साधक और विरक्त का सा था।


साहित्यिक रचना- उनकी भक्तमाल भक्तों के चरित्र की माला है जिसमें नाभादास के पूर्ववर्ती और समवर्ती वैष्णव भक्तों के चरित्र वर्णित हैं। यह ग्रन्थ छप्पय छन्द की रचना है, जिसमें 316 छप्पयों में 200 भक्तों के चरित्र वर्णित हैं। ये छप्पय बड़े प्रभावी हैं जिनमें नाभादास के तलस्पर्शिणी, अन्तर्दृष्टि, मर्मग्राहिणी प्रज्ञा, सारग्राही चिन्तन और विदग्ध भाषा-शैली दमकती दिखायी देती है। इनमें कवि का विशाल अध्ययन सूक्ष्म, पर्यवेक्षण, प्रदीर्घ मनन और अन्तरंग अनुशीलन भी झलकता दीखता है। यहाँ उनकी कला का भी पूर्ण उत्कर्ष झलकता दिखायी देता है। विजयेन्द्र स्नातक ने उनके छप्पय के विषय में लिखा है- नाभादास ने भक्तों के परिचय में जिस समास शैली का परिचय दिया है वह उनके गम्भीर चिन्तन मनन का परिणाम है। जिन भक्तों का परिचय उन्होंने लिखा है उनकी रचना शैली, काव्यकला, भक्ति-पद्धति एवं अन्य विशिष्टताओं आदि को प्रायः एक ही छप्पय में कूट-कूट कर समाविष्ट कर दिया गया है।


छप्पय-कबीर का सारांश


जो भक्ति विहीन होता है, वही धर्म पर चलता है। आज की स्थिति में यज्ञ, व्रत, दान, भजन सभी तुच्छ हैं। कबीर की साखी, सबद और रमैनी, हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिये प्रमाणस्वरूप हैं। मानव को सदा दूसरे के हित का वचन बोलना चाहिये। साथ ही ऐसी भाषा बोलनी चाहिए जो पक्षपात रहित हो, यह संसार ऐसा विचित्र है जो प्रत्यक्ष देखकर उस पर विश्वास नहीं करता है, सुनी-सुनायी बातों पर विश्वास नहीं करता है। यही कारण है कि कबीर ने वर्णाश्रम, धर्म और षट्शास्त्रों को कहीं भी महत्व नहीं दिया है।


छप्पय-सूरदास का सारांश


सूरदास के विषय में नाभादास कहते हैं- सूरदास की उक्ति में ऐसा अनुप्रास आया है और वह इस प्रकार सजा भी है कि उनकी स्थिति दूसरों से भारी लगती है, वचन में प्रेम का निर्वाह अद्भुत तुक के साथ हुआ है। उनकी दिव्य दृष्टि से हृदय में हरि लीला का आभास होने लगता है। जन्म, कर्म, गुण, रूप सबको जिह्वा से ही प्रकाशित किया है। जिसके पास निर्मल बुद्धि है और जो यह सुनता हो कि दिव्य सूर के समान कोई कवि नहीं है और सूर के कवित्त सुनकर उनके सामने नतमस्तक नहीं होता है, उसका जीवन व्यर्थ है।






                      4. छप्पय पाठ का प्रश्न उत्तर


1. नाभादास ने छप्पय मे कबीर की किन विशेषताओं का उल्लेख किया है ? उनकी क्रम से सूची बनाइए।


उत्तर- नाभादास ने कबीर की निम्नलिखित विशेषताओ का उल्लेख किया है -


i. कबीर की मति अति गंभीर और अंतःकरण भक्तिरस से सरस था ।


ii. वे जाति-पाति एवं वर्णाश्रम का कोई महत्व नही देते थे।


iii. कबीर ने केवल भगवद्भक्ति को ही श्रेष्ठ माना है।


iv. भगवद्भक्ति के अतिरिक्त जितने धर्म है, उन सबको कबीर ने अधर्म एवं व्यर्थ बताया है।


V. कबीर पक्षपात नही करते है।


2. 'मुख देही नाही भनी' का क्या अर्थ है? कबीर पर यह कैसे लागू होता है ?


उत्तर- 'मुख देही नाही भनी' का अर्थ है मुँह देखकर नही कहना। कबीर ऐसे कवि है जिन्होने कभी भी मुँह देखी बात नही की। सच को सच कहने मे उन्हें कोई परवाह नही था। वो पक्षपात नही करते थे। वो ये भी कहते है कि मुख को देखकर हिंदू-मुसलमान होने का अनुमान नही लगाया जा सकता है। ये सब बेकार है, भवसागर से पार होने का एकमात्र रास्ता है 'भगवद्भक्ति' ।


3. सूर के काव्य की किन विशेषताओ का उल्लेख कवि ने किया है ?


उत्तर- कवि नाभादास ने सूर के काव्य के चमत्कार, अनुप्रास एवं उनकी भाषा की सुंदरता की सराहना की है। इनकी भाषा मे उर्फ थत 'तुक' की प्रशंसा की है। सूर ने अपने काव्य मे क ण के जन्म, कर्म, गुण, रुप आदि को भी दर्शाया है। कवि नाभादास कहते है कि जो सूर के काव्य को सुनेगा, उसकी बुद्धि विमल हो जाती है


4. अर्थ स्पष्ट करे-


(क) सूर कवित्त सुनि कौन कवि, जो नहिं शिरचालन करै ।


उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति नाभादास द्वारा रचित 'छप्पय' कविता से लिया गया है। कवि कहते है कि' कौन ऐसा कवि है, जो सूरदास जी की कविता सुनकर प्रसन्न नही हो और भाव-विभोर होकर सिर न हिलाये ।

ख) भगति विमुख जे धर्म सो सब अधर्म करि गाए ।


उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति नाभादास द्वारा रचित 'छप्पय' कविता से लिया गया है। कबीर का कहना है कि भक्ति के विमुख जितने भि धर्म है उन सबको अधर्म कहा जाना चाहियें । अर्थात प्रभुभक्ति या भगवद्भक्ति ही सर्वश्रेष्ठ है। इसके अलावा सब व्यर्थ है।


5. 'पक्षपात नहि बचन सबहिके हितकी भाषी' इस पंक्ति मे कबीर के किस गुण का परिचय मिलता है?


उत्तर- 'पक्षपात नहि बचन सबहिके हितकी भाषी' मे यह दर्शाया गया है कि कबीर हिंदू, मुसलमान, आर्य, अनार्य मे कोई भेद नहीं रखते है। वे पक्षपात नही करते है बल्कि सबके हित की बात करते है। वे सिद्धांतवादी है और सिद्धांतों को ही लेकर आगे बढ़ते है ।


तुक का अर्थ - छंद के चरणों के अंतिम अक्षरों का मेल


6. कविता मे तुक का क्या महत्व है ? इन छप्पयो के संदर्भ मे स्पष्ट करें


उत्तर- कविता मे तुक का मतलब हुआ कविता का लयबद्ध यानि संगितामत्मक होना । कविता मे जितनी लय या संगीत होगा वह उतनी ही आकर्षक होगी । कवि के शब्द चयन की प्रतिभा कविता के लय से ही होती है। कवि नाभादास द्वारा इस छप्पय मे जो तुक का प्रयोग किया गया है, वो हिन्दी साहित्य मे दुर्लभ है। अतिभारि-तुकधारी, लीलाभासी-परकासी जैसा तुक बहुत ही मनोहर है।


7. 'कबीर कानि राखी नहीं' से क्या तात्पर्य है ?


उत्तर- कबीर ने चार वर्णाश्रम तथा छह दर्शन मे से किसी का महत्व नही दिया । उन्होंने केवल भगवद्भक्ति को ही संसार रुपी भवसागर पार करने का साधन बताया है।


8. कबीर ने भक्ति को कितना महत्व दिया ?


उत्तर- कबीर ने भक्ति क़ो सर्वश्रेष्ठ माना है। मनुष्य को भगवद्भक्ति के अलावा इस भवसागर को पार करने का कोई दूसरा मार्ग नही है। वे कहते है कि मनुष्य को भक्ति करते समय मन को शुद्ध रखना चाहियें। वे कहते है कि भक्ति से विमुख जितने भी धर्म है, सभी अधर्म है। भक्ति के अतिरिक्त सब कुछ व्यर्थ है। 


BY- ANU SIR (PATNA); SCIENCE SANGRAH

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