6. एक लेख और एक पत्र science sangrah pdf

 





6. एक लेख और एक पत्र


लेखक - भगत सिंह

जन्म - 28 सितम्बर 1907

शहादत - 23 मार्च 1931

जन्मस्थान - बंगा चवक, न० 105, गुगैरा ब्रांच, वर्तमान लायलपुर (पाकिस्तान) पैतृक गाँव - खटकड़कलाँ, पंजाब

माता-पिता - विद्यावती एवं सरदार किशन सिंह, चाचा अजित सिंह, सरदार स्वर्ण सिंह, भाई कुलबीर सिंह, कुलतार सिंह

शिक्षा- प्राइमरी शिक्षा अपने गाँव बंगा में। फिर लाहौर के डी० ० ए० वी० स्कूल से वर्ग नी तक की पढ़ाई। नेशनल कॉलेज . लाहोर से एफ० ए० किया, बी० ए० के दौरान पढ़ाई छोड़ डी ओर क्रन्तिकारी दल में शामिल हुए|

• पिता और चाचा अजित सिंह लाला लाजपत राय के सहयोगी थे।

●12 वर्ष की उम्र में जलियांवालाबारा की मिट्टी के लेकर क्रन्तिकारी गतिविधियों की शुरुआत

• 1922 में चौरा चौरी कांड के बाद 15 वर्ष की उम्र में कांग्रेस और महात्मा गाँधी से मोहभंग 

• 1923 में पढ़ाई और घर छोड़कर कानपुर, गणेश शंकर विद्यार्थी के पत्र 'प्रताप' में सेवाएँ दी 

• 1926 में अपने नेतृत्व में पंजाब में 'नौजवान भारत सभा' का गठन किया 

* 1928 से 31 तक चंद्रशेखर आजाद के साथ मिलकर 'हिंदुस्तान समाजवादी प्रजातांत्रिक संघ' का गठन किया। 

* 8 अप्रैल 1929 को बटुकेश्वर दत्त और राजगुरु के साथ केन्द्रीय असेम्बली में बम फेका और गिरफ्तार हुए । 

•अक्टूबर 1926 में दशहरा मेले में हुये बम विस्फोट के कारण मई 1927 में पहली गिरफ्तारी हुई ।

प्रमुख कृति - पंजाब की भाषा तथा लिपि की समस्या, विश्वप्रेम, युवक, मै नास्तिक क्यों हूँ, अछूत समस्या, विद्यार्थी और राजनीती, सत्याग्रह और हड़ताले, बम का दर्शन, भारतीय क्रांति का आदर्श


                  पाठ का प्रश्न और उत्तर 

1. विद्यार्थियों को राजनीति में क्यों भाग लेना चाहिए?


उत्तर-विद्यार्थियो को राजनीति में भाग इसलिए लेना चाहिए क्योकि उन्हें ही कल देश की बागडोर अपने हाथ में लेनी है। अगर वे आज से ही राजनीति में भाग नही लेंगे तो आने वाले समय में देश को भली-भाँति नही सँभाल पाएंगे, जिससे देश का विकास न हो सकेगा।


2. भगत सिंह को विद्यार्थियों से क्या अपेक्षाएँ है ?


उत्तर- भगत सिंह की विद्यार्थियों से निम्नलिखित अपेक्षाएँ है-

देश को आजाद करने में तन-मन-धन से सहयोग करे।

विद्यार्थी अलग-अलग रहते हुए भी अपने देश की अस्तित्व की रक्षा करे। वो इनका परम कर्तव्य है। वे पढने के साथ साथ राजनीति का भी ज्ञान जरुर रखे और जब जरूरत पड़े तो देश के लिए जंग के मैदान में भी कूद पड़े । वे एक भारी क्रांति के लिए हमेसा तत्पर रहे।


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3. भगत सिंह के अनुसार'केवल कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है? उनके जीवन के आधार पर इसे प्रमाणित करे ।

उत्तर- भगत सिंह के अनुसार ये सही है की कष्ट सहकर भी देश की सेवा की जा सकती है। देश की गुलामी की स्थिति भगत सिंह को बहुत ज्यादा बेचैन करती थी। वे क्रन्तिकारी गतिविधियों में हिस्सा लिए लोगो को जागरूक करने के लिए लेख लिखे, संगठन बनाये तथा एक सक्रीय कार्यकर्ता के रूप में जेल भी गए। ऐसे देश भक्त को आज फिर से सलामी देते है जो हँसते-हँसते फांसी के फंदे पर झूल गये। उनकी यह कुर्बानी भारतीय मानस को झकझोर दिया और आगे चलकर देश आजाद हुआ।


4. भगत सिंह ने कैसी मृत्यु को सुंदर' कहा है? वे आत्महत्या को कायरता कहते है, इस सम्बन्ध में उनके विचारो को स्पष्ट करे ।


उत्तर - भगत सिंह ने कहा की आजादी के लिए संघर्ष करते हुए मृत्युदंड के रूप में मिलने वाली मृत्यु से सुंदर कोई मृत्यु नहीं हो सकती क्योकि यह मृत्यु आगे आने वाली पीढ़ी में आजादी के संघर्ष के लिए एक जूनून पैदाकरेगी। वे व्यक्तिगत कष्ट और दुखो के चलते आत्महत्या को कायरता मानते है। वे अपने साथी को पत्र के माध्यम से बताते है कि विपत्तियाँ तो व्यक्ति को पूर्ण बनाती है। उनसे बचने के लिए आत्महत्या का रास्ता चुनना बहुत बड़ी कायरता है।


5. भगत सिंह रुसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण क्यों मानते है? वे एक क्रांतिकारी से क्या अपेक्षाएँ रखते है ? 

उत्तर- भगत सिंह रुसी साहित्य को इतना महत्वपूर्ण इसलिए मानते है क्योकि उस साहित्य में जीवन की वास्तविकता का चित्रण मिलता है। उनकी कहानियों में कष्टमयह श्य पढने वालो के मन में एक विशेष आत्मबल पैदा करता है। भगत सिंह ये मानते है की इसी तरह भारत में भी क्रांतिकारियों के मन में आत्मबल पैदा करना जरुरी है। एक क्रांतिकारी से यह अपेक्षा की जाती है कि वह दुःख और कष्ट को सहने के लिए हमेसा तत्पर रहे, क्योकि क्रान्ति के शुरू होते ही मुश्किलें भी शुरू हो जाती है।


6. निम्नलिखित कथनों का अभिप्राय स्पस्ट करे-


(क) मै आपको बताना चाहता हूँ कि विपत्तियाँ व्यक्ति को पूर्ण बनाने वाली होती है।


उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति भगत सिंह द्वारा रचित पाठ 'एक लेख और एक पत्र' से ली गई है। भगत सिंह सुखदेव को पत्र में लिखते है कि विपत्तियाँ मनुष्य को उनसे सामना करने के लिए प्रेरित करती है। मनुष्य उन विपत्तियों को दूर करने के लिए उपाय सोचने लगता है। यदि खुले दिल से सोचने लगता है तो वह अपने साथ-साथ दुसरे को भी इस विपत्तियों से निपटने के लिए प्रेरित करता है और विपतीयाँ उसके व्यक्तित्व को पूर्णता की ओर ले जाती है।


6. (ख) हम तो केवल अपने समय की आवश्यकता की उपज है।


उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति भगत सिंह द्वारा रचित पाठ 'एक लेख और एक पत्र' से ली गई है। भगत सिंह का मानना है कि देश की सामाजिक आर्थिक पर्सि थतियां ही उस देश की राजनितिक पर्सि थतियों को जन्म देती है। जिस समय में देश की सामाजिक आर्थिक पर्सि धति शोषक प्रवृत्ति की होगी, उसमे राजनितिक उथल पुथल होता रहेगा, और शोषण के दगन चक्रों के खिलाफ संघर्ष होते रहेंगे और हम जैसे क्रन्तिकारी जन्म लेते रहेंगे


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(ग) मनुष्य को अपने विश्वासों पर ढ़तापूर्वक अडिग रहने का प्रयत्न करना चाहिए।


उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति भगत सिंह द्वारा रचित पाठ 'एक लेख और एक पत्र' से ली गई है। भगत सिंह कहते है कि मनुष्य को अपने विश्वासों पर संदेह नहीं करना चाहिए तथा दृढ़तापूर्वक अडिग होकर लगातार प्रयास करना चाहिए। वे कहते है कि जब वे देश की आजादी के लिए अपना कार्य करते थे तो उस समय नाना प्रकार की कठिनाइयाँ सामने आया करती थी और अगर हम उस कठिनाइयों से डरकर अपना कार्य करना बंद कर दे, तो ये मानव तन हमारे लिए व्यर्थ है। हमे अपने विश्वासों पस्ट दत्तापूर्वक अडिग होकर लगातार प्रयास करना चाहिए ।


7. 'जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए। आज जब देश आजाद है, भगत सिंह के इस विचार का आप किस तरह मूल्यांकन करेंगे ?


उत्तर- वीर क्रांतिकारी, माँ भारती के सपूत भगत सिंह देश की आजादी के लिए जंग लड़े थे। जब वे अपने साथी सुखदेव को पत्र लिखते है तो कहते है कि मुझे इस जंग के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा निश्चय ही मृत्युदंड दी जायेगी। मुझे किसी प्रकार की पूर्ण क्षमा या नम्र व्यवहार की तनिक भी आशा नहीं है। वे कहते है कि मेरी अभिलाषा यह है कि जब यह आन्दोलन अपनी चरम सीमा पर पहुंचे तो हमे फांसी दे दी जाये साथ ही साथ कहते हे कि मेरी यह भी इच्छा है कि यदि कोई सम्मानपूर्ण और उचित समझौता होना कभी संभव हो जाये, तो हमारे जैसे व्यक्तियों का मामला उसके मार्ग में कोई रुकावट या कठिनाई उत्पन्न करने का कारण न बने क्योकि जब देश के भाग्य का निर्णय हो रहा हो तो व्यक्तियों के भाग्य को पूर्णतया भुला देना चाहिए।


8. भगत सिंह ने अपनी फांसी के लिए किस समय की इच्छा व्यक्त की है? वे ऐसा समय क्यों चुनते है?


उत्तर - भगत सिंह ने इच्छा व्यक्त की है कि जब देश की आजादी की लड़ाई अपने चरम सीमा पर हो, तभी उन्हें फांसी दी जाए। क्योकि लड़ाई के चरम पर आन्दोलनकारी दल भावनात्मक रूप से बेहद संवेदनशील होते है। यदि ऐसे समय पर उन्हें फांसी दी जाएगी तो आन्दोलनकारी दल की भावनात्मक एकता में बल आएगा और आने वाले समय में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विरोध करने में सहायता मिलेगी।


9. भगत सिंह के इस पत्र से उनकी गहन वैचारिकता, यथार्थवादष्ट ष्टि का परिचय मिलता है। पत्र के आधार पर इसकी पुष्टि करे ।


उत्तर- यह पत्र भगत सिंह ने क्रांतिकारी साथी सुखदेव द्वारा जेल में मिल रही यातनाओं से क्षुब्ध होकर लिखे गये पत्र के जबाब में लिखा था। सुखदेव ने बेहद कमजोर और भावुकतापूर्ण ढंग से कहा था कि उनको आजादी के संघर्ष का कोई भविष्य नहीं दिखाई देता है। जेल की इन यातनाओं से आत्महत्या करना मुसिफ लगता है। जबाब में भगत सिंह लिखते है कि क्रांति व्यक्तिगत सुख दुःख के लिए न तो शुरू होती है और न ही समाप्त। इसमें सामूहिक हित जुड़ा होता है। इस पत्र के मध्यम से भगत सिंह ने बहुत सभी व्यावहारिक उदहारण, भावपूर्ण संस्मरणों, और राजनीती प्रतिदों के माध्यम से सुखदेव को पुनः यह संकल्पित होने का आह्वान करते है कि आत्महत्या की कल्पना उचित नहीं है।


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