4. अर्धनारीश्वर (रामधारी सिंह दिनकर)
1. 'यदि संधि की वार्ता कुंती और गांधारी के बिच हुई होती, तो बहुत संभव था की महाभारत न मचता। लेखक के इस कथन से क्या आप सहमत है ? अपना पक्ष रखे ।
उत्तर- लेखक का कहना है कि 'पुरुष इतना कर्कश और कठोर हो उठा है कि युद्धों में अपना रक्त बहाते समय उसे यह ध्यान ही नही रहता है कि रक्त के पीछे जिनका सिंदूर बहनेवाला है, उनका क्या हाल होगा। और न सिंदूरवालियों को ही इसकी फ़िक्र है कि और नहीं तो, उन जगहों पर तो उनकी राय खुले जहाँ सिंदूर पर आफत आने की आशंका है। इस आधार पर लेखक के मन में यह व्याप्त होता है
कि अगर " कौरवों की सभा में यदि संधि की वार्ता कृष्ण और दुर्योधन के बिच न होकर कुंती और गांधारी के बिच हुई होती, तो बहुत संभव था की महाभारत नही मचता ।
2. अर्धनारीश्वर की कल्पना क्यों की गई होगी? आज इसकी क्या सार्थकता है?
उत्तर - अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती का कल्पित रूप है, जिसका आधा अंग पुरुष का और आधा अंग नारी का होता है। यह कल्पना शिव और पार्वती के बिच पूर्ण समन्वय दिखाने को निकाली गई होगी। अर्धनारीश्वर की कल्पना में "नर-नारी पूर्ण रूप से समान है एवं उनमे से एक के गुण दुसरे के दोष नही हो सकते। अर्थात नर में नारियों के गुण आयें तो इससे उनकी मर्यादा हीन नहीं होती, बल्कि,उनकी पूर्णता में वृद्धि होती ही होती है।
किन्तु पुरुष और स्त्री में अर्धनारीश्वर का यह रूप आज दिखाई नही देता। नारी समझती है कि पुरुष के गुण सीखने से उसके नारीत्व में कमी आएगी। इधर पुरुष भी नारी के गुणों को अपनाने से घबराता है। ऐसा लगता है कि पुरुष और नारी के गुणों का बंटवारा हो गया है और इस विभाजन के रेखा को लांघने में पुरुष और नारी दोनों को भी लगता है।
3. रविंद्रनाथ, प्रसाद और प्रेमचंद के चिंतन से दिनकर क्यों असंतुष्ट है ?
उत्तर-रविंद्रनाथ के अनुसार नारी की सार्थकता उसकी भंगिमा के मोहक और आकर्षक होने में है. केवल पृथ्वी की शोभा, केवल आलोक, केवल प्रेम की प्रतिमा बनने में है। कर्मकीर्ति, वीर्यबल और शिक्षा-दीक्षा लेकर वह क्या करेगी ? प्रसाद के अनुसार इड़ा वह नारी है जिसने पुरुषो के गुण सीखे है तो निष्कर्ष यही निकलेगा कि प्रसाद जी भी नारी को पुरुषो के क्षेत्र से अलग रखना चाहते थे। प्रेमचंद जी के अनुसार पुरुष जब नारी के गुण लेता है तब वह देवता बन जाता है; किन्तु नारी जब नर के गुण सीखती है तब वह राक्षसी जाती है। हो दिनकर जी इन लोग के विचार से असंतुष्ट है क्योकि उनका विचार है की सदियों की आदत और अभ्यास से उनका अंतर्मन यही कहता है
कि नारी जीवन की सार्थकता पुरुष को रिझाकर रखने में है।
4. प्रवृत्तिमार्ग और निवृतिमार्ग क्या है ?
उत्तर- गृक् थ जीवन को स्वीकार करना और उसके मार्ग पर चलना ही प्रवृत्तिमार्ग कहलाता है तथा गृक् थ जीवन को अस्वीकार करने वाला मार्ग निवृत्तिमार्ग कहलाता है।
5. बुद्ध ने आनंद से क्या कहा ?
उत्तर-बुद्ध ने आयुष्मान आनद से ईषत पश्चाताप के साथ कहा कि "आनंद! मैंने जो धर्म चलाया था, वह पाँच सहस्त्र वर्ष तक चलने वाला था, किन्तु अब वह केवल पांच सौ वर्ष ही चलेगा, क्योकि नारियो को मैंने भिक्षुणी होने का अधिकार दे दिया है।"
6. स्त्री को अहेरिन, नागिन और जादूगरनी कहने के पीछे क्या मंशा होती है, क्या ऐसा कहना उचित है?
उत्तर- स्त्रियों को अहेरिन, नागिन या जादूगरनी कहने के पीछे सबसे बड़ी मंशा यह है कि पुरुष उसे ऐसा कहकर अपनी दुर्बलता अथवा कल्पित श्रेष्ठता के दुलराने में सहायता मिलती है। असल में देखा जाय तो विकार नारी में भी है और नर में भी है। नर में तो नाग और जादूगर के गुण नारी से भी अधिक है।
7. नारी की पराधीनता कब से आरम्भ हुई ?
उत्तर- जब से मानव जाति ने कृषि का आविष्कार किया तब से नारी की पराधीनता आरम्भ हुई। कृषि के आविष्कार होने से नारी घर में और पुरुष बाहर रहने लगा। यहाँ से जिन्दगी दो टुकड़ो में बँट गई। घर का जीवन सिमित और बाहर का जीवन निस्सीम होता गया एवं छोटी जिन्दगी बड़ी जिन्दगी के अधिकाधिक अधीन होती चली गई। इस पराधीनता के कारण नारी अपने अस्तित्व की अधिकारिणी नही रही। उसके सुख और दुःख प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा, यहाँ तक की जीवन और मरण पुरुष की मर्जी पर टिकने लगे।
8. प्रसंग स्पस्ट करे-
(क) प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसीट ष्टि से देखती है जिसह ष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित 'अर्धनारीश्वर' पाठ से ली गई है। इस पंक्ति के माध्यम से लेखक ने नारी जाति की पराधीनता की बात बताई है। लेखक का कहना है कि कृषि का विकाश सभ्यता का पहला सोपान था, किन्तु उस पहली ही सीढ़ी पर सभ्यता ने मनुष्य से भारी कीमत वसूल कर ली। आज प्रत्येक पुरुष अपनी पत्नी को फूलो सा आनंदमय भार समझता है और प्रत्येक पत्नी अपने पति को बहुत कुछ उसीह ष्टि से देखती है जिसह ष्टि से लता अपने वृक्ष को देखती होगी। इस पराधीनता के कारण नारी अपने अस्तित्व की अधिकारिणी नही रही। उसके सुख और दुःख प्रतिष्ठा और अप्रतिष्ठा, यहाँ तक की जीवन और मरण पुरुष की मर्जी पर टिकने लगे।
(ख) जिस पुरुष में नारीत्व नहीं, अपूर्ण है।
उत्तर- प्रस्तुत पंक्ति रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित 'अर्धनारीश्वर' पाठ से ली गई है। लेखक का कहने का तात्पर्य है कि जिस पुरुष में नारीत्व नही है यानि उनमे नारी का भी कुछ गुण होना चाहिए। नारी पुरुष को बहुत सहयोग करती है। ऐसा बिलकुल नही है की नर के अंदर नारी का गुण नही आना चाहिए। अर्धनारीश्वर का मतलब की दोनों अर्थात नर और नारी दोनों एक दुसरे के बिना अधुरा है। अतः पुरुष में भी नारीत्व होना चाहिए, अगर ऐसा नही है तो वो अपूर्ण है।
9. जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। कैसे?
उत्तर- नारी केवल नर को रिझाने अथवा उसे प्रेरणा देने को नही बनी है। जीवन यज्ञ में उसका भी अपना हिस्सा है और वह हिस्सा घर तक ही सिमित नही, बाहर भी है। जिसे भी पुरुष अपना कर्मक्षेत्र मानता है, वह नारी का भी कर्मक्षेत्र है। नर और नारी, दोनों के जीवनोद्देश्य एक ही है। यह अन्याय है कि पुरुष तो अपने उद्देश्य की सिद्धि के लिए मनमाने विस्तार का क्षेत्र अधिकृत कर ले और नारियों के लिए घर का एक कोना छोड़ दे। यह बिलकुल उचित नहीं है।
10. अर्धनारीश्वर निबंध में दिनकर जी के व्यक्त विचारो को सार रूप में प्रस्तुत करे।
उत्तर - अर्धनारीश्वर पाठ के निबंधकार रामधारी सिंह दिनकर जी है। दिनकर जी कहते है कि अर्धनारीश्वर शंकर और पार्वती का कल्पित
रूप है, जिसका आधा अंग पुरुष और आधा अंग नारी का होता है। निबंधकार कहते है कि नारी पुरुष गुणों कीह ष्टि से समान है। यदि
नर में दया, ममता, औदार्य, सेवा आदि की विशेषताएं आ जाये तो उनका व्यक्तित्व धूमिल नही बनता बल्कि और अधिक निखर जाता है। इसी तरह प्रत्येक स्त्री में पुरुष का तत्व होता है परन्तु सिरद उसे कोमल शारीर वाली, पुरुष को आनंद देने वाली रचना, घर की दीवारों में रहने वाली मानसिकता उसे अलग बनाती है और इसलिए इसे दुर्बल कहा जाने लगा। समय बीतने के साथ साथ पुरुषो ने महिलाओं के अधिकार को दबाता गया। पुरुष और स्त्री के बिच अधिकार और हक़ का बटवारा हो गया। महिलाओं को सिर्फ सुख का साधन समझा जाने लगा है। दिनकर जी स्त्री के प्रति टैगोर, प्रसाद और प्रेमचंद जैसे कवियों के विचार से असहमत थे,। निबंधकार कहते है की प्रत्येक नर को एक हद तक नारी और नारी को एक हद तक नर बनाना भी आवश्यक है। गांधीजी ने अपने जीवन के अंतिम दिनो में नारीत्व की साधना की थी।