12th Class Hindi पद ( सूरदास) 100 Marks Hindi

 


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12th Class Hindi पद ( सूरदास) 100 Marks Hindi

 कवि परिचय


भारतीय भाषाओं में से ब्रज का माधुर्य कवियों को ऐसा भाया कि रसिक शिरोमणि की लीलाओं का गान करने हेतु उन्हें वही सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रतीत हुई। यद्यपि सूरदास ब्रजभाषा के प्रथम कवि माने जाते हैं (प्रारम्भिक कवि) पर उनकी भाषा इतनी विकसित, प्रौढ़ तथा समृद्ध है कि अपने वैभव और गांभीर्य को प्रभावित किये बिना नहीं रहती।

भक्तिकाव्य की सगुण कृष्ण काव्यधारा के श्रेष्ठतम कवि सूर ही माने जाते हैं। उन्हें लीलारसिक कृष्ण भक्त कवि माना जाता है। उनके काव्य में कृष्ण कथा के वे ही प्रसंग वर्णित हैं, जो पर्याप्त सरस है। वात्सल्य और श्रृंगार के तो वे सम्राट माने जाते हैं। आचार्य शुक्ल के अनुसार सूर वात्सल्य और श्रृंगार का कोना-कोना झांक आये हैं।

सूर काव्य की महत्ता तीन विषयों में मानी जाती है- विनय भक्ति, वात्सल्य और श्रृंगार।

जीवन परिचय-  यद्यपि सूर का जीवनवृत्त विवादास्पद है फिर भी जो सर्वमान्य तथ्य है उनके आधार पर सूर का जीवनवृत्त वर्णित है- सूरदास का जन्म 1478 ई. में सीही (दिल्ली के पास) में हुआ था। शिक्षा तो अपने आप अर्जित की, उनके विषय में यह भी पहेली है कि वे जन्मान्ध थे भी या नहीं ?

वल्लभाचार्य के शिष्य बने, पुष्टिमार्ग को अपनाया, अष्टछाप के रत्न रहे। साथ ही भक्त, संगीतज्ञ, दार्शनिक, आचार्य तथा महान् सन्त भी थे।

रचनाएँ 'सूरसागर', 'साहित्य लहरी', राधारसकेलि, सूरसारावली, जिसमें कि सूरसागर ही कवि की कीर्ति का आधार है।

वात्सल्य के तो वे सम्राट ही हैं, बाल चेष्टाओं का चित्रण विलक्षण है, उनका भ्रमरगीत हिन्दी की अनुपम थाती है, साथ ही संगीत, चित्रकला, मूर्तिकला, नाट्यकला आदि का ऐसा संगम अन्यत्र दुर्लभ ही है।

सूर की कला भी बड़ी विलक्षण है। शब्द चयन बड़ा अनूठा है, उपालम्भ तो झकझोर देता है, सूर की कला में वाक्चातुर्य निराला है। ये सारी विशेषताएँ उन्हें 'सूर-सूर' बनाती हैं।



पद का सारांश


1. माता यशोदा ब्रजराज कुँवर को जगा रही है कँवल फूल गये हैं- यह संकेत है कि सबेरा आ गया है, भंग भी लताओं पर आ गये हैं। मुर्गा बाँग दे रहा है। पक्षी कलरव कर रहे हैं। जंगल में उनका कोलाहल हो रहा है। गाय भी गौशाला में बछड़े हेतु रम्भा रही है। चन्द्रमा का प्रकाश मलिन हो रहा है, रवि का प्रकाश बढ़ रहा है। अब चारों ओर गीत गाये जा रहे हैं। अतः हे अम्बुज कर धारी श्याम अब जाग जाओ।


2. बाल कृष्ण नन्द की गोद में बैठे खा रहे हैं। थोड़ा-सा ही खा पाते हैं, कुछ धरती पर गिरा देते हैं। कृष्ण वात्सल्य (संयोग) रस की व्यंजना है आलम्बन बाल कृष्ण और आश्रय यशोदा है। भाषा ब्रज है। उनकी इस समय जो शोभा है, उसको बड़े गौर से नन्दरानी देख रही हैं। उनके सामने नाना प्रकार के व्यंजन हैं-बरी, बरा, बेसन अनेक प्रकार के पकवान हैं। वे अपने हाथ से ही खा रहे हैं। अतः कुछ धरती पर गिराते जाते हैं। पहले उनकी रुचि दही के दोने पर है। मिश्री, दही, माखन मिलाकर अपने मुख में डालते हैं उस समय उनकी शोभा बड़ी धन्य होती है। वे स्वयं खाते हैं नन्द के मुख में भी डालते हैं, यह सौन्दर्य अवर्णनीय है। वास्तवमें जिस रस में नन्द और यशोदा विलास कर रहे हैं वह तीनों लोकों में भी नहीं है। भोजन कर जब कृष्ण ने आचमन किया तब सूर की लालसा जूठन पाने की है।  

    



 



पाठ का प्रश्न उत्तर


1. प्रथम पद में किस रस की व्यंजना हुई है ?


उत्तर - प्रथम पद मे वात्सल्य रस कि व्यंजना हुई है। इसमे बालक कृष्ण को दुलार भरे कोमल मधुर स्वर मे भोर होने की बात कहते हुये जगाया जा रहा है।


2. गाये किस ओर दौड़ पड़ी ?


उत्तर - गाये सुबह होते ही रंभाती हुई अपने बाड़े की तरफ दौड़ पड़ी। बछरो के


3. प्रथम पद का भावार्थ अपने शब्दों मे लिखे ।


उत्तर- प्रथम पद का भावार्थ बड़ा ही मनमोहक है। इस पद मे दुलार भरे कोमल स्वर मे सोये हुये कृष्ण को भोर होने की बात कहते हुए जगाया जा रहा है। उनको भोर होने का बहुत सारा संकेत दिया जा रहा है जैसे- कमल के फूलो का खिलना, मुर्गे का बोलना, पक्षियों का चहचहाना, गायों का रंभाना, चंद्रमा का मलिन होना, रवि का प्रकाशित होना आदि ।


4. पठित पदों के आधार पर सूर के वात्सल्य वर्णन की विशेषताये लिखिये ।


उत्तर- सूर की वात्सल्य वर्णन सराहनीय है। उनके वात्सल्य वर्णन की विद्वानो ने बहुत ही प्रशंसा की है।

‌लाल भगवानदीन लिखते है सूरदास जी ने बाल चरित्र वर्णन मे कमाल कर दीया है।


‌गोस्वामी तुलसीदास जी भी इनके वात्सल्य वर्णन की बहुत ही प्रशंसा करते है।


‌ • आचार्य रामचंद्र शुक्ल कहते है" जीतने विस्तृत और अच्छे तरीके सें सूर ने बाल लीला का वर्णन किया है, उतने अच्छे से किसी और कवि ने नही किया हजारी प्रसाद द्विवेदी कहते है- " यशोदा के बहाने सूरदास ने मातृ हृदय का ऐसा स्वाभाविक सरल वर्णन किया है कि आश्चर्य होता है। माता के बारे मे व्याख्या करना कवि के सिवा और किसी के बस की बात नही।




 
5. काव्य सौंदर्य स्पष्ट करे-


(क) कछुक खात, कछु धरनि गिरावत छवि निरखति नंद- रनियाँ । 


उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश मे कवि कृष्ण के खाने का ढंग बताया है। बालक कृष्ण नंद की गोदी में बैठकर भोजन करते समय कुछ खाते है, तो कुछ धरती पर गिराते है। इसमें वात्सल्य रस है। ब्रज भाषा की सुंदर प्रयोग है। इसमें रुपक अलंकार का प्रयोग हुआ है।


(ख) भोजन करि नंद अचमन लिन्हौ मांगत सूर जुठनियाँ ।


उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश मे वात्सल्य रस के साथ-साथ भक्ति रस भी है। नंद बाबा श्रीकृष्ण को भोजन करवाकर कुल्ला करवाते है। वही सूरदास बची हुई जूठन को प्रसाद रुप मे ग्रहण करना चाहते है अतः वे इसे नंद बाबा से मांगते है। इसमें प्रेम और भक्ति है। भाषा सहज और सरल है। इसमें ब्रज भाषा का प्रयोग है। इसमें वात्सल्य रस है। इसमे श्रीकृष्ण के प्रति प्रेम है।


(ग) आपुन खात, नंद- मुख नावत, सो छबि कहत न बनियाँ । 


उत्तर- प्रस्तुत पद्यांश मे बालक कृष्ण के बाल व्यवहार का वर्णन है। कृष्ण स्वयं कुछ खा रहे है तथा कुछ नंद बाबा के मुँह मे डाल रहे है। इस शोभा का वर्णन नही किया जा सकता। इसमें ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ है। भाषा सरल है और सहज है। इसमें वात्सल्य रस नका अपुर्व समावेश है। है


6. श्रीकृष्ण खाते समय क्या-क्या करते है ? 


उत्तर- कृष्ण खाते समय कुछ भोजन खाते है तथा कुछ जमीन पर गिराते है। वे अपने हाथ मे दही का पात्र लेना चाहते है। वही मुख पर माखन, मिश्री तथा दही लगा लेते है। उनको सब कुछ अपने हाथों से खाना अच्छा लगता है।


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