3. सम्पूर्ण क्रांति पाठ का प्रश्न उत्तर
1. आन्दोलन के नेतृत्व के सम्बन्ध में जयप्रकाश नारायण के क्या विचार थे, आन्दोलन का नेतृत्व वे किस शर्त पर स्वीकार करते है?
उत्तर : : -
आंदोलन के नेतृत्व के संबंध में जयप्रकाश नारायण के विचार थे कि मुझे नाम के लिए नेता नहीं बनना है। यदि मुझे सामने खड़ा करके कोई पीछे से बताए कि मुझे क्या करना है तो मै इस नेतृत्व स्वीकार करने के लिए उन्होने एक शर्त रखी थी कि मै सबकी सलाह लूँगा। सबकी बात सुनकर उनसे बातचीत करूँगा और अधिक से अधिक बाते स्वीकार करने की कोशिश करूंगा। लेकिन अंतिम फैसला मेरा होगा और उसे हर किसी को मानना भी पड़ेगा। तब तो नेतृत्व का कोई अर्थ है और तभी क्रांति सफल हो सकती है।
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2. जयप्रकाश नारायण के छात्र जीवन और अमेरिका प्रवास का परिचय दे। इस अवधी की कौन सी बाते आपको प्रभावित करती है?
उत्तर -जयप्रकाश नारायण का छात्र जीवन बहुत ही संघर्षशील रहा। वे साइंस के छात्र थे। वे कुछ दिन फूलदेव वायु के साथ लेबोरेटरी में रहे। बिहार विद्यापीठ से वे आइ० एस० सि० की परीक्षा पास किये। वे स्वामी सत्यदेव के भाषण सुने थे की अमेरिका में मजदूरी करके लड़के पढ़ सकते है तो वे अमेरिका गये। वहाँ वे बागानों में काम किये, कारखानों में काम किये, जहां जानवर मारे जाते है, उन कारखानों में भी उन्होंने काम किया। जब छुट्टी मिलती थी तो काम करके इतना तो जरूर कमा लेते थे की कुछ खाने के लिए इंतजाम हो जाता था, कुछ कपड़े भी खरीद लेते थे और कुछ पैसे फीस के लिए काम आते थे और बाकी हर दिन एक घंटा रेस्त्रों में, होटल में बर्तन धोने का या वेटर का काम करते थे ताकि शाम का भोजन मिल जाए। घर में एक चारपाई थी जिस पर जयप्रकाश जी और एक अमेरिकन लड़का रहता था। वे दोनों एक साथ एक ही रजाई में सोते थे। इतवार के दिन या कुछ ऑड टाइम' में होटल के काम को छोड़ करके जुटे साफ करने का काम भी करते। इस प्रकार इतनी संघर्ष और गरीबी से वे वहां बी० ए०पास किये। ये बात तो सही है कि मेहनत रंग लाती है। स्कॉलरशिप मिलने के बाद वे डिपार्टमेंट का असिस्टेंट बन गए और फिर ट्यूटोरियल क्लास लेने लगे ।
3. जयप्रकाश नारायण कम्युनिष्ट पार्टी में क्यों नहीं शामिल हुए?
उत्तर - जयप्रकाश नारायण कम्युनिस्ट पार्टी में इसलिए शामिल नहीं हुए क्योकि उनका मानना था कि जो देश गुलाम है, वहाँ के कम्युनिस्टो को अपने को आजादी की लडाई से अलग नहीं रखना चाहिए। चाहे उस लडाई का नेतृत्व किसी भी वर्ग के हाथ मे हो। यह विचार उन्होने लेनिन से ग्रहण किया था।
4. (क) अगर कोई डेमोक्रेसी का दुश्मन है, तो वे लोग दुश्मन है, जो जनता के शांतिमय कार्यकर्मों में बाधा डालते है, उनकी गिरफ्तारी करते है, उन पर लाठी चलाते है, गोलियां चलाते है।
प्रस्तुत पंक्ति जयप्रकाश नारायण द्वारा रचित सम्पूर्ण क्रांति' पाठ से लिया गया है। एक बार जयप्रकाश नारायण जी से पुलिस के एक उच्चाधिकारी मिलने आए और कहने लगे कि मैं दीक्षित जी के मुँह से सुना है कि अगर जयप्रकाश नारायण जी न होते तो विहार जल गया होता। यह सुनते ही नारायण जी प्रश्न करते है कि यदि ऐसा है तो फिर मेरे नेतृत्व में होने वाले प्रदर्शन और सभा मे लोगों को आने से क्यो रोकते हो? क्या आप लोग जनता से घबराते है? जनता के प्रतिनिधि होकर उन्ही के देश में उन पर प्रतिबंध लगाते हो और तुम्हे ऐसा करते हुए शर्म भी नहीं आती। अगर देश में कोई प्रजातंत्र का दुश्मन है तो वे लोग है जो जनता के शांतिपूर्ण कार्यक्रमो में बाधा डालते है। उन पर लाठियाँ तथा गोलियाँ चलवाते है और उनकी गिरफ्तारियाँ करवाते है।
(ख) व्यक्ति से नहीं, हमें तो नीतियों से झगड़ा है, सिद्धांतो से झगड़ा है, कार्यों से झगड़ा है।
नारायण जी के कुछ पुराने मित्र चाहते थे कि उनके और इंदिरा जी के बीच मेल-मिलाप हो जाए। तब उन्होने बडे ही स्पस्ट शब्दों में कहा था कि मेरा किसी से व्यक्तिगत झगडा तो गलत नीतियो, व्यर्थ के सिद्धांतो और फालतू के कार्यों से है।
5. बापू और नेहरु की किस विशेषता का उल्लेख जेपी ने अपने भाषण में किया गया है?
जयप्रकाश नारायण का यह कहना है कि जब वो नौजवान थे तो बापू जब कोई बात कहते थे और वो बात जेपी के विचारो से नहीं मिलते थे अर्थात जेपी को वो बात अच्छी नहीं लगती थी तो वे सीधे बापू के सामने बोलते थे कि 'बापू ये बात हम नहीं मानते। बापू में इतनी महानता थी कि वो बुरा नही मानते थे। जेपी जी कहते है कि मैं जवाहर लाल नेहरु को हमेसा भाई कहता था (बड़ा भाई)। वो भी मुझे बहुत मानते थे। मै उनका बड़ा आदर और प्रेम करता था। नेहरु जा का ही वड़ा ही खेह था मुझ पर। में उनकी भी आलोचना करता था लेकिन उनमे भी बडप्पन था कि वो कभी बुरा नहीं माने।
6. भ्रष्टाचार की जड़ क्या है? क्या आप जेपी से सहमत है, इसे दूर करने के लिए क्या सुझाव देंगे ?
भ्रष्टाचार की जड़ चुनावो का भारी खर्चा है। देश में होने वाले चुनावो में करोड़ों रुपए खर्च किए जाते है। यह सब रुपया ब्लैक-मार्केटियर लोगो से इकट्ठा किया जाता है और इसका कोई हिसाब-किताब भी नहीं होता है। हम भी जयप्रकाश जी के कथन से सहमत है। इसे दूर करने का निम्रलिखित उपाय है-(क) चुनावो के खर्चे को कम किया जाए। (ख) चुनावो मे किए गए खर्च का सारा हिसाब-किताब लिखित में लिया जाए। (ग) अधिक खर्च करने वाले लोगो के विरूद्ध कठोर कार्यवाही की जाए ।
7. दलविहीन लोकतंत्र और साम्यवाद में कैसा सम्बन्ध है।
जेपी जी का कहना है कि दलविहीन लोकतंत्र तो मार्क्सवाद तथा लेनिनवाद के मूल उद्देश्यों में से है। मार्क्सवाद के अनुसार समाज जैसे-जैसे साम्यवाद की ओर बढ़ता जाएगा, वैसे वैसे राज्य-स्टेट का क्षय होता जाएगा और अंत में एक स्टेटलेस सोसाइटी कायम होगी। वह समाज अवश्य ही लोकतांत्रिक होगा, बल्कि उसी समाज में लोकतंत्र का सच्चा स्वरूप प्रकट होगा और लोकतंत्र निश्चय ही दलविहीन होगा।
8. संघर्ष समितियों से जयप्रकाश नारायण की क्या अपेक्षाएँ है?
उत्तर : -
संघर्ष समितियों से जयप्रकाश नारायण की यही अपेक्षाएँ थी कि उनका काम केवल शासन से संघर्ष करना नहीं है, बल्कि उनका काम तो समाज के हर अन्याय और अनीति के विरुद्ध संघर्ष करने का होगा, और इस प्रकार से इन समितियों के लिए बराबर एक महत्वपूर्ण कार्य रहेगा। गाँव में छोटे अफसरों पा कर्मचारियों की चाहे वे पुलिस के हो या अन्य किसी प्रकार के जो घूसखोरी चलती है. उसके खिलाफ तो संघर्ष रहेगा ही। अर्थात गाँव में तरह तरह के अन्याय होते है, तो ये समितियां उनका विरोध करेगी।
9. चुनाव सुधार के बारे में जयप्रकाश जी के प्रमुख सुझाव क्या है?
चुनाव सुधार के बारे मे जयप्रकाश जी के प्रमुख सुझाव निम्नलिखित है-
- चुनाव की पद्धति मे आमूल परिवर्तन होना चाहिए ।
- चुनावो पर होने वाला खर्च कम करना चाहिए ।
- गरीब उम्मीदवारो के चुनाव मे भाग लेने का प्रयास करना चाहिए।
- मतदान प्रक्रिया स्वच्छ और स्वतंत्र हो।
- उम्मीदवारो के चयन मे मतदाताओ का हाथ वास्तव मे हो।
- चुनाव के बाद मतदाताओ का अपने प्रतिनिधियो पर अंकुश हो ।
- यदि जनता का कोई प्रतिनिधि गलत कार्य करता है तो संघर्ष समितियाँ उसे करे। ने के लिए बाध्य इस्तीफा देने फा देने के लि
10. दिनकर जी का निधन कहाँ और किन पर्सि थतियों में हुआ था?
एक दिन जयप्रकाश नारायण जी मद्रास में अपने मित्र इश्वर अय्यर के साथ रुका। वहाँ दिनकर जी, गंगा बाबु मिलने आये थे। वहां दिनकर जी बहुत ही प्रसन्न दिखे। एक दिन अचानक रात को दिल का दौरा पड़ा, तीन मिनट में उनको 'विलिं डन नर्सिंग होम' अस्पताल पहुंचाया गया 'रामनाथ जी गोयनका' के द्वारा। वहाँ हर तरह का इंतजाम था। लेकिन दिनकर जी फिर भी बच न सके और उसी उनका निधन हो गया ।
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